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कहानी पढा़ई के समय की

 बात पढ़ाई के समय की है। कौन सी क्लास की है यह याद नहीं ,लेकिन इतना याद है की मैं जूनियर कक्षा में पढ़ता था । हमारा एक साथी सुरेश स्कूल नहीं आता था ।मास्टर साहब ने आदेश दिया कि उसे पकड़ कर लाया जाए ।चार लड़के उसे पकड़ कर लाने के लिए स्कूल से चले ।सुरेश का घर झालू में आर्य समाज के पीछे तालाब के पास  था। सुरे'% नरेश दो भाई थे। इनका परिवार आर्य समाजी था । दिखाई देते ही हम सुरेश को  पकड़ने लगे। पास में सुरेश के पालतू कुत्ते पड़े थे ।  उसने वह कुत्ते हम पर लहका दिए ।कुत्तों को आता देखकर मेरे साथी तो भाग गए ।मैं भी भागा किंतु मेरा पजामा पैर में फंसा और मैं  गिर गया ।मेरे गिरते  कुत्ते ने मेरे कुलहे पर काट दिया ।सुरेश तो स्कूल नहीं आया ।पता नहीं मास्टर साहब ने बाद में उसे क्या दंड दिया, किंतु कुत्ते का कांटे का इलाज करने के लिए मुझे खारी में हकीम जी के पास 14 दिन तक जाना पड़ा।

जब डीएम के अर्दली को ज्ञापन दिया

  जब डीएम के अर्दली को ज्ञापन दिया श्रमजीवी पत्रकार यूनियन की बिजनौर इकाई   ने पत्रकारों के किसी मामले को लेकर अगले   दिन प्रदर्शन करने का निर्णय   लिया।कारण   क्या था, अब ये याद नहीं।शायद उस समय   श्याम   सुंदर डीएम थे।   पत्रकार राजेंद्र पाल सिंह कश्यप यूनियन के प्रदेशीय   उपाधयक्ष होते थे। मैंने उन्हें अवगत कराया भी कि कल    रविवार है।   उन्होंने कहा   − होने   दो । महत्वपूर्ण मामला   है।प्रदर्शन   कल ही होना   है।   तै   हो गया।   अखबारों में सूचना   छाप   दी गई कि जनपद के पत्रकार   12 बजे टाउनहाल में एकत्र हाकर प्रदर्शन करते कलेक्ट्रेट जाएंगे और डीएम का एक ज्ञापन देंगे। जनपद के पत्रकार आ गए।टाउन हाल में काफी देर भाषण हुए।निर्धारित समय पर प्रदर्शन शुरू हो गया।   पत्रकारों के प्रदर्शन मौन होते हैं, तो   यह प्रदर्शन भी मौन ही था।   प्रदर्शन कलेकट्रेट पंहुचा। अवकश के कारण   कलेकट्रेट बंद था।   नियमानुसार अवकाश में भी एक मजिस्ट्रेट डयूटी पर रहता है। वह भी नही था। सब को गुस्सा बहुत आया। तै हुआ कि डीएम के निवास चला जाए।कलेक्ट्रेट के सामने डीएम निवास था।   प्रदर्शन करते पत्रकार डीएम न

पत्रकार संतोष वर्मा

  पत्रकार संतोष वर्मा कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जीते जी तो कष्ट देते हैं , मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते ।ऐसे ही एक   पत्रकार थे संतोष वर्मा ।संतोष वर्मा पतले −दुबले लंबे कुर्ता पजामा पहनते थे। मवाना मेरठ के रहने वाले मेरठ अमर उजाला में बिजनौर डैस्क पर काम करते थे। डैक्स से परिचय हुआ तो पता लगा उनकी ससुराल नहटौर में हैं। अवकाश के दिन उनका ससुराल आना− जाना रहता । ससुराल आते   तो ऑफिस भी आते ।   ऑफिस आते तो सदा कुछ ना कुछ उल्टा−सीधा बताते। कभी   कहते कि अमर उजाला के     मालिक तुमसे नाराज है। तुम्हारी बहुत शिकायत हैं ।तुम्हें हटाने जा रहा हैं। जब भी   आते   एक नया तनाव देकर जाते। एक बार इसी दौरान मेरा   मेरठ जाना हुआ। मेरठ में   मैं अमर उजाला के मालिक   अतुल माहेश्वरी के सामने बैठा था। उन्होंने कहा   कि आजकल आप मन से काम नहीं कर रहे। सब ठीक तो है। मैंने कहा कि मैं तो आपके आदेश का इंतजार कर रहा हूं ।उन्होंने कहा   कैसा आदेश। मैंने कहा −अमर उजाला से हटाने का ।वह बोले कि यह बात आपसे किसने कही तो मैंने साफ-साफ बता दिया की अवकाश के दिन संतोष शर्मा नहटौर ससुराल   हैं । ससुराल जाते तो कुछ देर

रामेश्वर राणा

  रामेश्वर राणा जन्म तिथि पांच जनवरी 1955 निधन सात अप्रेल 1989 रामेश्वर राणा जैसा पत्रकार मैने जीवन में  नही देखा। वह सामने वाले को   इस तरह प्रभावित करते कि उससे अपना मन चाहा काम करा लेते। उनका जन्म पांच जनवरी 1955 को रेहड़ में हुआ।वे बताते थे कि उनकी मां रेहड स्टेट के किसी राजकुमार की पत्नी  की सहेली थी।राजकुमारी शादी होकर रेह़ड़  आई  तो  उन राणाजी की  मां भी उनक साथ  आई।वह यहीं रहकर पढ़े। कितना पढ़े ये  पता नही चलता,किंतु  उनका लेख बहुत अच्छा था।भाषा पर नियंत्रण था। युवावस्था में उनके संबध रेहड़ के राजमहल की किसी युवती से  हो गए।  राजा साहब को पता चला। उन्होंने राणा को बुरी तरह पीटा। मरा  समझकर जंगल में फिंकवा दिया। वह बच गए। दया करके किसी ने इलाज कराया। पत्रकार कैसे बने ,ये पता नही किंतु साप्ताहिक निकलते। सारा खर्च इसी से चलता। जनपद के कई प्रमुख व्यक्तियों से उनके संबध थे। वे बिजनौर टाइम्स , राष्ट्रवेदना   और उत्तर भारत टाइम्स में भी   रहे और प्रचार तथा विज्ञापन का कार्य किया। अखबार में थे।  सो अधिकारियों से उनके संपर्क थे।  इन्ही   संबधों की बदौलत अपनी पत्नी को इन्होंने विकास विभा

मेरा फोटोग्राफी का शौक

  मेरा फोटोग्राफी का शौक मुझमें   बचपन से ही कुछ नया करने की लगन थी। जब   मैं हाई स्कूल में हल्दौर पढ़ता था। तो मैंने जीवन   में पहला कैमरा लिया। ये कैमरा झालू में बड़े महल के दक्षिण की साइड में रहने वाले विद्या सागर साहब से दस   रूपये मे खरीदा। इसमें ऊपर से ओबजेक्ट देखकर फोटो खींचा जाता था। कुछ ही फोटो खींचे की हल्दौर के एक सोती नाम के साथी ने मांग लिया। बाद में कह दिया कि खो गया। पत्रकारिता शुरू की तो पत्रकार साथी मास्टर रामकुमार से कैमरा उधार मांग लिया। ये क्लिक थर्ड कैमरा था। मैं भाटिया बुक स्टाल पर बैठता था। यहीं बिजनौर शहर के बड़े रईस जानी भाई का आना जाना था। कभी इनके शीरे के खत्ते होते थे।   इन खत्तों( पक्के गड्ढों) में ये शीरा एकत्र करते और बेचते। स्टेशन से नजीबाबाद मार्ग को जोड़ने वाले मार्ग के उत्तर में इनकी भव्य कोठी थी।स्टेशन के सामने गेस्ट हाउस था। शीरे का काम खत्म होने और पारिवारिक बंटवारा   हो जाते के कारण इनकी हालत खस्ता होने लगी।   इससे पहले ये बहुत शौकीन थे।   इनसे मैंने 150 रूपये में एगफा आइसोली थर्ड कैमरा खरीदा। ये मेरे पास बहुत समय रहा। जर्मन का बना यह कैमरा

अशोक मधुप के परिवार का इतिहास

    हम बिजनौर जिले के झालू नामक कस्बे के रहने वाले हैं।शहर के मध्य सड़क के किनारे छतरी वाल कुआं है।इसके पूर्व की दिशा में जाने वाल रास्ते पर दो सौ कदम चलकर दौराहा है , दौराहे के आगे    बांए हाथ वाले रास्ते के घूम     पर   दाहिनी ओर   हमारा घर है। बुजुर्ग बताते रहे हैं कि हम मेरठ के कहीं के रहने वाले हैं। हमारे किसी पूर्वज के बच्चे नही होते थे। उन्हें स्थान बदलने की सलाह दी गई। इस सलाह पर चलकर वे झालू आ बसे।इसीलिए हम झालू में मेरठीय कहलाते हैं।मीरापुर( मेरठ ) में हमारे कुटुंब के लोग रहतें हैं।झालू में हमारे कुटंब वालों के कुछ घर थे। उनमें कोई जीवित नहीं। कुछ झालू छोड़कर चले गए। वर्तमान में झालू में हमारे ही परिवार के सदस्य (चचेरे भाई) रहतें हैं। मैं    बिजनौर में मुहल्ला अचारजान में कुंवर    वाल गोविंद स्ट्रीट के मकान नंबर 25 में रहता हूं। मेरे पिता ओम प्रकाश शर्मा के अनुसार हम गौड़ ब्राह्मण है ।हमारा गोत्र मैत्रेय है।हमारे पंचम दादा नैन सिंह जी के दो पुत्र हुए।श्री छेदालाल और गणेशी लाल।छेदा लाल के एक पुत्री हुई।    उनका नाम याद नहीं    पर उनकी शादी मंडावर के पास रतनपुर में श्